अक्षय कुमार के डीपफेक वीडियो पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी: एआई दुरुपयोग पर जताई गंभीर चिंता

अक्षय कुमार के डीपफेक वीडियो पर कोर्ट ने जताई गंभीर चिंता
Spread the love

अक्षय कुमार के डीपफेक वीडियो पर कोर्ट ने जताई गंभीर चिंता

परिचय

डिजिटल तकनीक की दुनिया में “डीपफेक” (Deepfake) एक ऐसा शब्द बन गया है, जो तेजी से भय और विवाद दोनों का कारण बनता जा रहा है। हाल ही में बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार से जुड़ा एक डीपफेक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें उनकी आवाज़ और चेहरा बदलकर फर्जी बयान प्रसारित किया गया।
इस मामले पर सुनवाई करते हुए अदालत ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के दुरुपयोग पर गहरी चिंता व्यक्त की और कहा कि “यदि इस पर तुरंत नियंत्रण नहीं किया गया, तो यह समाज, लोकतंत्र और व्यक्तिगत निजता के लिए एक गंभीर खतरा बन सकता है।”


क्या है मामला?

हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अक्षय कुमार का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उन्हें राजनीतिक बयान देते हुए दिखाया गया। बाद में जांच में सामने आया कि यह वीडियो पूरी तरह डीपफेक तकनीक से तैयार किया गया था।
इस वीडियो को लेकर न केवल अक्षय कुमार ने कानूनी कार्रवाई की मांग की, बल्कि कई साइबर विशेषज्ञों ने भी इसे “तकनीक के खतरनाक मोड़” के रूप में देखा।


डीपफेक क्या है?

डीपफेक एक AI आधारित तकनीक है, जिसमें किसी व्यक्ति के चेहरे, आवाज़ या हावभाव को दूसरे वीडियो या ऑडियो में इस तरह मर्ज किया जाता है कि वह असली लगता है।
यह तकनीक “डीप लर्निंग” (Deep Learning) और “न्यूरल नेटवर्क” (Neural Network) का इस्तेमाल करती है, जिससे यह मानव अभिव्यक्तियों की सटीक नकल कर सकती है।
हालांकि, जहां इसका उपयोग फिल्मों, गेमिंग और शिक्षा में सकारात्मक रूप से किया जा सकता है, वहीं गलत हाथों में जाने पर यह फेक न्यूज, ब्लैकमेलिंग और चरित्र हनन का हथियार बन जाती है।


कोर्ट की टिप्पणी

सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा,

“डीपफेक तकनीक का दुरुपयोग केवल व्यक्तिगत छवि को नुकसान नहीं पहुंचाता, बल्कि यह लोकतांत्रिक संस्थाओं और जनमत को भी प्रभावित कर सकता है।”

कोर्ट ने सरकार से पूछा कि क्या डीपफेक और एआई से जुड़े मामलों के लिए कोई विशेष कानून या निगरानी प्रणाली मौजूद है।
अदालत ने यह भी कहा कि “यह समय है जब सरकार, टेक्नोलॉजी कंपनियों और समाज को मिलकर इस डिजिटल खतरे से निपटने की ठोस रणनीति बनानी चाहिए।”


सरकार का पक्ष

केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) और डिजिटल इंडिया दिशानिर्देशों के तहत इस तरह की सामग्री पर कार्रवाई की जा सकती है।
हालांकि, सरकार ने यह भी स्वीकार किया कि डीपफेक जैसे उभरते खतरे से निपटने के लिए स्पष्ट कानूनी परिभाषा और नियम की आवश्यकता है।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को डीपफेक कंटेंट हटाने और उपयोगकर्ताओं की पहचान सत्यापित करने के निर्देश भी दिए हैं।


सेलेब्रिटीज और डीपफेक का खतरा

अक्षय कुमार का मामला कोई पहला नहीं है। इससे पहले रश्मिका मंदाना, आलिया भट्ट, प्रियंका चोपड़ा, और टेलर स्विफ्ट जैसी कई मशहूर हस्तियों के डीपफेक वीडियो वायरल हुए थे।
इन वीडियोज़ ने न केवल उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया, बल्कि यह भी दिखाया कि किसी भी व्यक्ति की डिजिटल पहचान अब AI टूल्स से आसानी से मैनिपुलेट की जा सकती है।


डीपफेक से निजता और सुरक्षा पर असर

  1. व्यक्तिगत गोपनीयता का उल्लंघन: किसी व्यक्ति की अनुमति के बिना उसका चेहरा या आवाज़ इस्तेमाल करना निजता के अधिकार का हनन है।
  2. साइबर अपराधों में वृद्धि: डीपफेक का उपयोग अब फेक न्यूज़, राजनीतिक प्रोपेगेंडा, ब्लैकमेलिंग और अश्लील सामग्री के प्रसार में भी किया जा रहा है।
  3. विश्वास संकट: जब सच और झूठ में फर्क करना मुश्किल हो जाए, तो लोकतंत्र में विश्वास की नींव कमजोर होती है।

भारत में कानूनी स्थिति

भारत में वर्तमान में कोई ऐसा विशेष कानून नहीं है जो डीपफेक अपराधों को सीधे परिभाषित करता हो।
हालांकि, निम्नलिखित प्रावधानों के तहत कार्रवाई की जा सकती है:

  • आईटी एक्ट की धारा 66D: पहचान की धोखाधड़ी पर दंड
  • आईपीसी की धारा 499 और 500: मानहानि के मामले
  • आईटी नियम, 2021: फेक या हानिकारक सामग्री को हटाने की जिम्मेदारी प्लेटफॉर्म्स पर

फिर भी, विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अब AI-specific legislation लाने की आवश्यकता है, जो डीपफेक जैसी तकनीकों के दुरुपयोग को स्पष्ट रूप से परिभाषित करे।


विशेषज्ञों की राय

साइबर लॉ विशेषज्ञ पवन दुग्गल का कहना है,

“डीपफेक सिर्फ एक तकनीकी चुनौती नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और कानूनी चुनौती भी है। भारत को अब तुरंत ‘डीपफेक रेग्युलेशन पॉलिसी’ की जरूरत है।”

वहीं डिजिटल नीति विश्लेषक निखिल पिल्लई का मानना है कि “AI की शक्ति को सीमित नहीं किया जा सकता, लेकिन इसके गलत उपयोग पर स्पष्ट जवाबदेही तय करनी होगी।”


डीपफेक रोकने के उपाय

  1. डीपफेक डिटेक्शन टूल्स: सरकार और सोशल मीडिया कंपनियों को ऐसे सॉफ्टवेयर अपनाने चाहिए जो वीडियो की प्रामाणिकता पहचान सकें।
  2. जन जागरूकता: आम जनता को यह सिखाना जरूरी है कि डीपफेक वीडियो कैसे पहचाने जाएं और रिपोर्ट करें।
  3. सख्त दंड प्रावधान: फेक कंटेंट बनाने और साझा करने वालों के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान होना चाहिए।
  4. AI पारदर्शिता कानून: AI जनरेटेड कंटेंट पर “यह AI द्वारा निर्मित है” जैसे डिस्क्लेमर अनिवार्य किए जाएं।

निष्कर्ष

अक्षय कुमार का डीपफेक मामला एक चेतावनी है कि टेक्नोलॉजी जितनी शक्तिशाली होती है, उसका दुरुपयोग उतना ही खतरनाक हो सकता है।
कोर्ट की टिप्पणी ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि AI युग में निजता, सत्य और नैतिकता की रक्षा सबसे बड़ी चुनौती बनने जा रही है।
अब यह सरकार, टेक कंपनियों और नागरिक समाज की संयुक्त जिम्मेदारी है कि इस चुनौती का समाधान ढूंढे, ताकि डिजिटल युग में विश्वास और सत्य कायम रह सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »